पटना का अशोक राजपथ
दिन भर गाड़ियों की चिल्लपों
अटकती भागती सैकड़ों गाड़ियाँ
कभी जाम में लटकती तो
कभी सरपट भागती
कमोवेश यही दृश्य होता है
जीवन के आपाधापी को दर्शाती
जो निर्बाध रुप से चलती जाती है
जीवन के उस रुप को दिखाती
जिसमें हर पल निकल जाती है
बंद मुठ्ठी में रेत की मानिंद
लगता है जैसे काश
समय कुछ धीमा हो जाये
तो कुछ अच्छा हो जाये
आइये एक और दृश्य देखें
इसी राजपथ से सटे
पी.एम.सी.एच.# की
इसके अनेक वार्डों की
जहाँ समय की गति
कुछ थमी हुई सी
मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी
जहाँ हर तरफ कई चेहरे
किंतु हर चेहरे पर एक ही भाव
हर चेहरे पर वही दो कातर आँखें
वेदना और करुणा से भरी
जहाँ कोई कोलाहल नहीं
जहाँ हर एक क्षण भारी है
हर ओर एक ही आस
बस किसी तरह ये क्षण गुजर जाए
[# पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल]
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