काव्य पल्लव

जीवन के आपाधापी से कुछ समय निकाल कर कल्पना के मुक्त आकाश में विचरण करते हुए कुछ क्षण समर्पित काव्य संसार को। यहाँ पढें प्रसिद्ध हिन्दी काव्य रचनाऐं एवं साथ में हम नव रचनाकारों का कुछ टूटा-फूटा प्रयास भी।
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Monday, 30 April 2012

यदि मैं कवि होता


यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन अनुभूतियों को
जो हृदय को छू
मन मस्तिष्क में
विचारों का बवंडर उठाती हैं।

यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस बच्चे के जीवन संघर्ष को
जिसके बालपन को
ईंट की चिमनीयों में झोंक दिया गया।

यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस लड़की की वेदना को
जिसे कई बार नाप-तौल कर
सरे बाजार बेच दिया गया।

यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन दबे कुचलों के दर्द को
जो ढूँढ़ते हैं
कूड़े-कचरों में अपनी आजीविका को।

यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस माँ की व्यथा को
जो प्रसव पीड़ा से भी गहरी थी
दिया था उसके अपने ही जाये ने।

यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन कहे अनकहे सम्बंधों को
जो समय के साथ
हासिए पर धकेल दिए गए।

अच्छा है, मैं कवि नहीं हूँ
क्यूँकि अगर कवि होता
तो वेदना परोसता
और इस सम्वेदनहीन संसार में
वेदना का भला क्या काम।

Thursday, 19 April 2012

जीवन गति

पटना का अशोक राजपथ
दिन भर गाड़ियों की चिल्लपों
अटकती भागती सैकड़ों गाड़ियाँ
कभी जाम में लटकती तो
कभी सरपट भागती
कमोवेश यही दृश्य होता है
जीवन के आपाधापी को दर्शाती
जो निर्बाध रुप से चलती जाती है
जीवन के उस रुप को दिखाती
जिसमें हर पल निकल जाती है
बंद मुठ्ठी में रेत की मानिंद
लगता है जैसे काश
समय कुछ धीमा हो जाये
तो कुछ अच्छा हो जाये
आइये एक और दृश्य देखें
इसी राजपथ से सटे
पी.एम.सी.एच.# की
इसके अनेक वार्डों की
जहाँ समय की गति
कुछ थमी हुई सी
मैले कुचैले कपड़ों में लिपटी
जहाँ हर तरफ कई चेहरे
किंतु हर चेहरे पर एक ही भाव
हर चेहरे पर वही दो कातर आँखें
वेदना और करुणा से भरी
जहाँ कोई कोलाहल नहीं
जहाँ हर एक क्षण भारी है
हर ओर एक ही आस
बस किसी तरह ये क्षण गुजर जाए

[# पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल]

गाँव की भोर

भोर की बेला
खिड़की से छन छन कर आती धूप
चिड़ियों की वो चहचाहट
गलियों में बच्चों का शोर
आज अरसे बाद
जब जल्दी उठा तो जाना
गाँव की सुबह आज भी उतनी ही खूबसूरत है!!