यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन अनुभूतियों को
जो हृदय को छू
मन मस्तिष्क में
विचारों का बवंडर उठाती हैं।
यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस बच्चे के जीवन संघर्ष को
जिसके बालपन को
ईंट की चिमनीयों में झोंक दिया गया।
यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस लड़की की वेदना को
जिसे कई बार नाप-तौल कर
सरे बाजार बेच दिया गया।
यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन दबे कुचलों के दर्द को
जो ढूँढ़ते हैं
कूड़े-कचरों में अपनी आजीविका को।
यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उस माँ की व्यथा को
जो प्रसव पीड़ा से भी गहरी थी
दिया था उसके अपने ही जाये ने।
यदि मैं कवि होता
तो लिख पाता
उन कहे अनकहे सम्बंधों को
जो समय के साथ
हासिए पर धकेल दिए गए।
अच्छा है, मैं कवि नहीं हूँ
क्यूँकि अगर कवि होता
तो वेदना परोसता
और इस सम्वेदनहीन संसार में
वेदना का भला क्या काम।