काव्य पल्लव

जीवन के आपाधापी से कुछ समय निकाल कर कल्पना के मुक्त आकाश में विचरण करते हुए कुछ क्षण समर्पित काव्य संसार को। यहाँ पढें प्रसिद्ध हिन्दी काव्य रचनाऐं एवं साथ में हम नव रचनाकारों का कुछ टूटा-फूटा प्रयास भी।
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Tuesday 26 August 2008

स्मृति शिखर से- करण समस्तीपुरी

- केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी"

स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन,
उर सिहर गया क्षण ठहर गया,
और अतीत बना दर्पण,
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन।

कर यत्न दिया विश्राम इसे,
पीड़ा उर की बतलाऊं किसे,
यह काल आवरण ओढ़ परी,
स्मरण पटल में जा गहरी,
पर पुनः पवन से पा जीवन,
फिर जाग उठी यादों की अगन,
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन।

नीरव नीर में शांत शिथिल,
दृग में अतीत का स्वप्न लिए,
किस्मत को कौन बदल सकता,
क्या मिला बहुत प्रयत्न किए,
जगा गयी स्मरण विहग को,
अरुणोदय की तीक्ष्ण किरण,
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन।

अकुला कर दीन विहग बोला,
अलसाई निज पलकें खोला,
सुदीर्घ रात का प्रात जान,
खग उड़ा नीड़ से पंख तान,
पंक्षी पर अंकुश कौन रखे,
पा गया निमिष में दूर गगन,
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन।

अम्बर का अंत कहाँ पावे,
बीते हुए कलह कैसे आवे,
आ गया गगनचर फिर थक के,
आशा फिर मिलने की रख के,
उर धीर भरा, सुर पीर भरा,
हो गाने लगा वह मस्त मगन,
स्मृति शिखर से चला प्रखर,
वह मधुर पवन, वह मुखर पवन।

- केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी"
बेंगलुरु, सम्पर्क- +९१- ९७४०० ११४६४,
ई-मेल-
keshav.karna@gmail.com

1 comment:

कुन्दन कुमार मल्लिक said...

मित्र, आपकी लेखनी से निकली इस मधुर पवन ने कई पुरानी स्मृतियाँ ताजी कर दी तथा साथ में कई नव सन्देश भी दिये। सुन्दर प्रस्तुति।
सस्नेह