(सौजन्य- हिन्द-युग्म)
प्रस्तुत है "काव्य पल्लव" के मुख्य रचनाकार "युनि कवि" श्री केशव कर्ण "करण समस्तीपुरी" की एक पुरस्कृत रचना।हिन्द-युग्म के जनवरी २००८ के यूनिकवि केशव कुमार कर्ण ने मई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में आठवाँ स्थान बनाया। आप भी देखिए आखिर यह कमाल कैसे हुआ? - कुन्दन कुमार मल्लिक
पुरस्कृत कविता- किसे सुनाऊँ अपने
पुरस्कृत कविता- किसे सुनाऊँ अपने
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत!!
वह मधुमय संसार सुहाना,
वह स्वर्णिम शैशव का हास!
सह-क्रीड़ा, साहचर्य हमारा,
बन कर रहा शुष्क इतिहास!!
क्या ये आँख मिचौनी ही है,
जरा बता बचपन के मीत!
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!
कोतूहल कलरव पीपल तल,
बृहद् विटप का शीतल छाँव!
तटिनी तट फैला सिकतांचल,
स्नेह-सुधानिधि सुंदर गांव!
पगडण्डी पर आँख बिछाए,
गए कई निशि-वाषर बीत!
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत !!
अश्रु शेष केवल आंखों में,
सपने तक नहीं आते हैं!
उस पीड़ा को क्या जानो तुम,
जब अपने छोड़ के जाते हैं!
याद तुम्हीं को करना प्रतिपल,
मेरे जर-जीवन की रीत!
तुम ही नहीं रहे मेरे प्रिये,
किसे सुनाऊं अपने गीत!!
2 comments:
IS sunder kavita ko padhane ka dhanyawad.
प्रिये केशव जी नमस्कार , आपका कविता मन को भा गया , भविष्य में मैं आपसे मिलना चाहता हूँ , समस्तीपुर मेरा ससुराल है , कभी कभी वंहा आना जाना रहता है , फ़िलहाल मैं दुबई में हूँ ,05 -02 -11 को घर आ रहा हूँ , आप जब कभी वंहा होंगे , तो- मुझे फ़ोन कीजिये . मेरा मो.न. है
09006853692 ,09869715068
ब्रजेश कुमार कुंवर
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